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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


लांछन मुंशी प्रेम चंद

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आश्रम में उस दिन जुगनू को दम मारने की फुर्सत न मिली। उसने सारा वृत्तांत मिसेज टंडन से कहा। मिसेज टंडन दौड़ी हुई आश्रम पहुँचीं और अन्य महिलाओं को खबर सुनायी। जुगनू उसकी तसदीक करने के लिए बुलायी गयी। जो महिला आती, वह जुगनू के मुँह से यह कथा सुनती। हर एक रिहर्सल में कुछ-कुछ रंग और चढ़ जाता। यहाँ तक कि दोपहर होते-होते सारे शहर के सभ्य समाज में वह खबर गूँज उठी।
एक देवी ने पूछा- यह युवक है कौन !
मिसेज टंडन- सुना तो, उनके साथ का पढ़ा हुआ है। दोनों में पहले से कुछ बातचीत रही होगी। वही तो मैं कहती थी कि इतनी उम्र हो गयी, यह क्वाँरी कैसे बैठी है? अब कलई खुली।
जुगनू- और कुछ हो या न हो, जवान तो बाँका है।
टंडन- यह हमारी विद्वान बहनों का हाल है।
जुगनू- मैं तो उसकी सूरत देखते ही ताड़ गयी थी। धूप में बाल नहीं सुफेद किये हैं।
टंडन- कल फिर जाना।
जुगनू- कल नहीं, मैं आज रात ही को जाऊँगी। लेकिन रात को जाने के लिए कोई बहाना जरूरी था। मिसेज टंडन ने आश्रम के लिए एक किताब मँगवा भेजी। रात को नौ बजे जुगनू मिस खुरशेद के बँगले पर जा पहुँची। संयोग से लीलावती उस वक्त मौजूद थी; बोली, बुढ़िया तो बेतरह पीछे पड़ गयी।
मिस खुरशेद- मैंने तुमसे कहा, था, उसके पेट में पानी न पचेगा। तुम जाकर रूप भर जाओ। तब तक मैं बातों में लगाती हूँ। शराबियों की तरह अंट-संट बकना शुरू करना। मुझे भगा ले जाने के प्रस्ताव भी करना, बस यों बन जाना जैसे अपने होश में नहीं हो।
लीला मिशन में डाक्टर थी। उसका बँगला भी पास ही था। वह चली गयी, तो मिस खुरशेद ने जुगनू को बुलाया।
जुगनू ने एक पुरजा उसको देकर कहा- मिसेज टंडन ने यह किताब माँगी है। मुझे आने में देर हो गयी। मैं इस वक्त आपको कष्ट न देती; पर सबेरे ही वह मुझसे माँगेंगी। हजारों रुपये महीने की आमदनी है मिस साहब, मगर एक-एक कौड़ी दाँत से पकड़ती हैं। इनके द्वारे पर भिखारी को भीख तक नहीं मिलती।

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